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सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के बिजनेस करने पर उठाया सवाल, कहा- जनता को पता होना चाहिए कि नेताओं की आय का स्रोत क्या है.

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(फोटो: पीटीआई)सुप्रीम कोर्ट ने अचानक बढ़ी नेताओं की अकूत संपत्ति पर सवाल उठाते हुए इस बात की वकालत की और कहा कि ऐसे मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित करके त्वरित सुनवाई की जरूरत है. हालांकि, केंद्र सरकार ने अदालत में इसका विरोध करते हुए कहा कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड संतोषजनक काम कर रहा है.
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘कोर्ट ने कहा कि विधायक और सांसदों का काम हर समय लोगों की समस्याएं सुनने और सुलझाने का होता है. ऐसे में उनकी संपत्ति में इतनी तेजी से बढ़ोत्तरी कैसे हो गई? अगर यह बढ़ोत्तरी किसी बिजनेस की वजह से है तो उस पर भी सवाल उठता है. एक व्यक्ति विधायक या सांसद होते हुए बिजनेस कैसे कर सकता है? जनता को पता होना चाहिए कि नेता की आय का स्रोत क्या है.’
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने बीते सोमवार को उच्चतम न्यायालय को बताया था कि देशभर में सात लोकसभा सांसदों और 98 विधायकों की संपत्तियों में तेज़ी से इज़ाफा हुआ है और इसमें अनियमितताएं पाई गई हैं.
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘सीबीडीटी ने एक सीलबंद लिफाफे में अदालत को बताया था कि सात सांसदों और 98 विधायकों ने चुनावी हलफनामे में जो जानकारी दी है, वह इनकम टैक्स रिटर्न की जानकारी से अलग है. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अदालत से आग्रह किया कि इन नामों को सार्वजनिक न किया जाए.’
सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने चार ऐसे नेताओं के उदाहरण ऐसे पेश किए हैं जिनकी संपत्ति में 1200 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. 22 ऐसे हैं जिनकी संपत्ति में 500 फीसदी तक का इजाफा हुआ है. केरल के एक नेता की संपत्ति में 1700 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई तो एक सांसद की संपत्ति में 2100 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है.
हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के मुताबिक, ‘नेताओं की बेहिसाब संपत्ति की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जबरदस्त वकालत की, लेकिन केंद्र सरकार ने इसका कड़ा विरोध किया. केंद्र ने कहा कि ऐसे मामलों में सीबीडीटी संतोषजनक काम कर रहा है. इसके लिए अलग से कोई व्यवस्था बनाने की जरूरत नहीं है.’
कोर्ट ने पूछा था कि ऐसे नेताओं को आयकर कानून के तहत ही क्यों ट्राई किया जा रहा है? इनके खिलाफ आपराधिक मामला क्यों नहीं चलना चाहिए? विशेष अदालत में त्वरित सुनवाई क्यों नहीं होनी चाहिए? इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सीबीडीटी का उद्देश्य ही है कि वह बेहिसाब संपत्ति की जांच करे.
समाचार एजेंसी भाषा ने खबर दी है कि उच्चतम न्यायालय ने सरकार से सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए नई फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन के लिए कानून बनाने पर विचार करने को कहा.
शीर्ष अदालत की पीठ को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा देशभर के सात लोकसभा सदस्यों और 98 विधायकों के नाम दिए गए हैं जिनकी संपत्तियों में दो चुनावों के बीच बेहिसाब बढोत्तरी देखी गई है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने इन नेताओं के नाम पढे हैं और वह इस मुद्दे पर गौर करेगी. पीठ ने कहा कि संसद के पास सांसदों के खिलाफ मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए इन अदालतों के गठन हेतु कानून तथा जरूरी आधारभूत ढांचा तैयार करने का अधिकार है.
न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने कहा, सांसदों और विधायकों के संबंध में, यह संसद के दायरे में आता है. कानून बनाने के लिए उसके पास जरूरी अधिकार है. कानून बनाइए और जरूरी आधारभूत ढांचा तैयार कीजिए.
पीठ ने कहा कि विधानसभा और संसद नये कानून बना रहे हैं जो अलग तरह के अधिकार और दायित्व पैदा करते हैं जिसके कारण अदालतों के सामने और मामले आते हैं.
अदालत ने सरकार से कहा, कुछ खास न्यायाधिकरणों को छोड़कर, कोई नई अदालत नहीं गठित हुई है. आप नई अदालतें और आधारभूत ढांचा तैयार करें क्योंकि फिलहाल भारत सरकार (न्यायिक प्रणाली पर) बजट का केवल एक या दो प्रतिशत खर्च कर रही है.
पीठ ने कहा कि इससे लंबित मामलों की संख्या में भी कमी आएगी. अदालत ने ये टिप्पणियां एनजीओ लोकप्रहरी द्वारा दायर याचिका पर कीं जिसमें उन उम्मीदवारों की जांच के लिए स्थायी तंत्र तैयार करने का अनुरोध किया गया जिनकी विधायकों या सांसदों के रूप में कार्यकाल के दौरान संपत्ति आय से अधिक बढ़ी.
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